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राजा, राज्य और गणराज्य /History chep 05 ✍️ AGT

राजा, राज्य और गणराज्य


आज से लगभग 3000 वर्ष पहले यानि 600 ई पू राजाओं की स्थिति में ब‌ड़े बदलाव हुए। वैदिक युग के राजाओं की तुलना में इस युग के राजा अधिक शक्तिशाली हो गये।


अश्वमेध यज्ञ

अब राजा चुनने की विधि भी बदल गई थी। जो व्यक्ति राजा बनना चाहता था उसे अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए बड़े अनुष्ठान करने पड़ते थे। ऐसा राजा अक्सर दूसरे राजाओं पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए अश्वमेध यज्ञ करता था।

अश्वमेध यज्ञ की कुछ रोचक बातें नीचे दी गई हैं:

  • इस यज्ञ के दौरान एक घोड़े को आस पास के इलाके में घूमने के लिए छोड़ दिया जाता था। यदि किसी दूसरे राजा के इलाके से घोड़ा बेरोक टोक निकल जाता था तो इससे यह समझा जाता था कि दूसरे राजा को यज्ञ करवाने वाले राजा का आधिपत्य स्वीकार है। यदि कोई उस घोड़े का रास्ता रोकता था तो उसे राजा से युद्ध करना होता था। युद्ध में जो जीतता था उसे ही सबसे शक्तिशाली राजा मान लिया जाता था।
  • जब घोड़ा सभी इलाकों से घूमकर वापस आ जाता था तो अन्य राजाओं को यज्ञ में आने का निमंत्रण भेजा जाता था। इससे अश्वमेध यज्ञ करने वाले राजा की ताकत को सबकी सहमति मिल जाती थी।
  • विशेष रूप से प्रशिक्षित पुरोहित यज्ञ के अनुष्ठान संपन्न करवाते थे। पुरोहितों को महंगे उपहार दिये जाते थे। इन उपहारों में गाय एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती थी।
  • यज्ञ में राजा ही सबके आकर्षण का केंद्र होता था। उसे सबसे ऊँचे आसन पर बैठने का अधिकार मिलता था। अन्य राजाओं को उनकी हैसियत के हिसाब से आसन मिलते थे। चूँकि राजा का सारथी हर युद्ध में उसके साथ होता था, इसलिए वह यज्ञ के दौरान राजा की बहादुरी के किस्से सुनाता था। अन्य राजाओं से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे मूक दर्शक बने रहें।
  • मुख्य राजा के रिश्तेदारों को भी यज्ञ में कुछ छोटे मोटे अनुष्ठान करने का मौका मिल जाता था। आम नागरिकों (विश या वैश्य) से अपेक्षा की जाती थी कि वे राजा के लिए उपहार लेकर आयें। शूद्रों को यज्ञ में शामिल नहीं होने दिया जाता था।
वर्ण व्यवस्था

समाज को चार वर्णों में बाँटा गया था, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र‌।

  1. ब्राह्मण: ब्राह्मण को वर्ण व्यवस्था में सबसे ऊँचा स्थान दिया गया था। ब्राह्मणों का काम था वेदों को पढ़ना और पढ़ाना। उन्हें तरह तरह के अनुष्ठान संपन्न कराने होते थे। इन अनुष्ठानों को करवाने के बदले में उन्हें उपहार दिये जाते थे।
  2. क्षत्रिय: इस वर्ण का स्थान दूसरे नंबर पर आता था। इस वर्ण में शासक वर्ग के लोग आते थे। क्षत्रिय का काम था युद्ध लड़ना और लोगों की सुरक्षा करना। क्षत्रिय भी अनुष्ठान कर सकते थे।
  3. वैश्य: इस वर्ण का स्थान तीसरे नंबर पर आता था। किसान, चरवाहे और व्यापारी इस वर्ण के सदस्य होते थे। वैश्यों को भी अनुष्ठान करने का अधिकार था।
  4. शूद्र: यह वर्ण सबसे निचले पायदान पर रखा गया था। शूद्रों का काम था अन्य तीन वर्णों की सेवा करना। महिलाओं को भी शूद्र माना जाता था। शूद्रों को यज्ञ करने की अनुमति नहीं थी। वे ऐसे अनुष्ठानों में शामिल भी नहीं हो सकते थे।

किसी भी व्यक्ति का वर्ण उसके जन्म से तय होता था। यानि, एक ब्राह्मण का बेटा हमेशा एक ब्राह्मण ही रहता था। इसी तरह किसी शूद्र का बेटा हमेशा शूद्र ही रहता था। लेकिन कुछ लोग इस व्यवस्था से सहमत नहीं थे, यहाँ तक कि कुछ राजा भी इसके विरोध में थे। उदाहरण के लिए पूर्वोत्तर भारत में समाज में इतना अधिक भेदभाव नहीं था और पुजारियों को उतना महत्व प्राप्त नहीं था।

जनपद

`जनपद’ शब्द दो शब्दों ‘जन’ और ‘पद’ से मिलकर बना है। इसका मतलब वह स्थान जहाँ लोगों ने अपने पैर रखे और बस गये। अश्वमेध यज्ञ सफलतापूर्वक करने के बाद एक राजा किसी जनपद का राजा बन जाता था। आपको शायद यह पता हो कि आज भी उत्तर प्रदेश में जिले को जनपद कहा जाता है।

जनपद का आकार बड़ा होता था, लेकिन यहाँ भी लोग झोपड़ियों में रहते थे और मवेशी पालते थे। जनपद के लोग कई फसल भी उगाते थे, जैसे कि चावल, दलहन, जौ, गन्ना, तिल और सरसों। पुरातत्वविदों ने जनपद वाले कई पुरास्थलों को खोज निकाला है, जैसे कि दिल्ली का पुराना किला, मेरठ के पास हस्तिनापुर और एटा के पास अतरंजीखेड़ा

चित्रित धूसर पात्र: लोग अक्सर मिट्टी के बरतन इस्तेमाल करते थे। कुछ बरतन लाल थे तो कुछ धूसर रंगे के थे। कुछ धूसर बरतनों पर सुंदर चित्रकारी भी होती थी। ऐसे बरतन शायद खास मौकों पर इस्तेमाल किये जाते थे।


महाजनपद

कुछ जनपद लगभग 2500 वर्ष पहले आकार में बड़े हो गये, और जनपदों से अधिक महत्वपूर्ण हो गये। इन्हें महाजनपद कहा जाने लगा। महाजनपद के कुछ उदाहरण हैं मगध, कोसल, अंग, पांचाल, आदि।

किला: महाजनपद किसी न किसी राजा की राजधानी हुआ करती थी। ऐसे नगर अक्सर किले से घिरे होते थे। किले बनाने में ईंट, पत्थर और लकड़ी का इस्तेमाल होता था। किले का निर्माण शहर को दुश्मन से बचाने के लिए किया जाता था। किले को महाजनपद की संपन्नता का प्रदर्शन करने के लिए भी बनाया जाता था। साथ में यह भी होता था कि किसी किलेबंद शहर पर नियंत्रण रखना अधिक आसान हो जाता था।

सेना: राजा एक नियमित सेना रखने लगे थे। सैनिकों को नियमित रूप से वेतन मिलने लगा था।

सिक्के: भुगतान के लिए सिक्कों का इस्तेमाल होने लगा था। सिक्कों पर पंच (आघात) करके डिजाइन बनाये जाते थे। इसलिए इन सिक्कों को आहत सिक्का या पंच क्वायन कहा जाता है। इस तरह से इस काल में वस्तु विनिमय प्रणाली से मुद्रा विनिमय प्रणाली की शुरुआत हुई।

टैक्स:

महाजनपद के राजा को किला बनवाने और सेना रखने के लिए बहुत अधिक धन की जरूरत पड़ती थी। पहले के राजा अन्य राजाओं से मिले उपहारों से अपना काम चला लेते थे। लेकिन अब केवल उपहारों से काम चलाना संभव नहीं था। इसलिए राजाओं ने कर वसूलना शुरु कर दिया। टैक्स वसूलने के लिए कुछ लोगों को काम पर भी रखा जाने लगा। टैक्स वसूलने के तरीके नीचे दिये गये हैं:

  • टैक्स के सबसे बड़े स्रोत किसान थे। उपज का छठा भाग टैक्स के रूप में लिया जाता था। इसे ‘भाग’ कहते थे।
  • शिल्पकार को मुफ्त मजदूरी के रूप में कर देना होता था। उसे महीने में एक दिन बिना मेहनताना लिए राजा के लिए काम करना होता था।
  • गड़ेरिये को टैक्स के रूप में पशु या फिर उससे जुड़ा उत्पाद देना होता था। (दूध, दही, ऊन, आदि‌)
  • व्यापार में बेचे और खरीदे जाने वाली वस्तुओं पर भी टैक्स लगाया जाता था।
  • आखेटक और भोजन-संग्राहक को जंगल के उत्पादों के रूप में टैक्स देना होता था।

कृषि में बदलाव

कृषि में दो बड़े बदलाव हुए:

  1. हल में लोहे के फाल का चलन: अब हल में लकड़ी के फाल की जगह लोहे के फाल का इस्तेमाल होने लगा। इससे खेती लायक जमीन का आकार बढ़ाने में काफी मदद मिली। इससे पैदावर बढ़ने लगी।
  2. धान की रोपनी: आपने खेतों में या टेलिविजन पर धान की रोपनी होते हुए देखा होगा। पहले धान के बीजों को जमीन के छोटे टुकड़े पर बोया जाता है। जब छोटे-छोटे पौधे निकल आते हैं तो उन्हें उखाड़ कर बड़ी जमीन पर फिर से रोपा जाता है। ऐसा करने से दो पौधों के बीच समुचित जगह छोड़ने में आसानी होती है। इसे धान की रोपनी या रोपण कहते हैं। इससे चावल की पैदावार बढ़ाने में मदद मिलती है। लेकिन धान की रोपनी बड़ा ही मेहनत वाला काम है। इसके लिए दास, दासी और भूमिहीन मजदूरों को काम पर लगाया जाता था। भूमिहीन मजदूरों को कम्मकार कहते थे।

मगध

गंगा नदी के किनारे बसे आज के दक्षिण बिहार, और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से को मगध के नाम से जाना जाता था। 200 वर्षों के भीतर मगध एक महत्वपूर्ण महाजनपद बन गया था। मगध पर नंद वंश का शासन हुआ करता था। मगध की तरक्की के पीछे के कुछ कारण इस प्रकार हैं:

इस क्षेत्र की जमीन को गंगा और सोन तथा गंगा की अन्य सहायक नदियों का पानी मिलता है। इसलिए यहाँ की जमीन उपजाऊ थी और यहाँ प्रचुर मात्रा में पानी था। उपजाऊ जमीन के कारण यहँ की पैदावार अच्छी थी और इसलिए यह एक संपन्न इलाका था। ये नदियाँ जल परिवहन के लिए बहुत ही अच्छा मार्ग प्रदान करती थीं।

मगध के कुछ भागों में घने जंगल थे, जिनसे प्रचुर मात्रा में लकड़ी मिलती थी। लकड़ी का इस्तेमाल भवन, रथ और गाड़ियाँ बनाने में होता था। जंगलों से हाथियों को पकड़ कर प्रशिक्षित किया जाता था ताकि उन्हें सेना में इस्तेमाल किया जा सके।

मगध के दो शक्तिशाली राजा थे बिंबिसार और अजातसत्तु (अजातशत्रु)। उन्होंने अन्य जनपदों को जीतने के हर संभव तरीके अपनाये।

महापद्म नंद एक अन्य शक्तिशाली राजा था। उसने मगध के शासन को उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में भी फैलाया।

मगध के शासक इतने शक्तिशाली थे कि सिकंदर की सेना भी उनके इलाके में घुसने से घबराती थी। आपको शायद पता होगा कि सिकंदर पूरी दुनिया पर फतह करने के इरादे से निकला था। वह यूरोप के मैसीडोनिया का राजा था।

मगह की राजधानी राजगृह में थी, जो आज राजगीर के नाम से जाना जाता है। बाद में राजधानी को पाटलीपुत्र ले जाया गया, जिसे अब पटना के नाम से जाना जाता है। ‘पाटली’ शब्द का अर्थ है पत्तन और ‘पुत्र’ का अर्थ है बेटा। इस तरह से पाटलीपुत्र का मतलब है पत्तन (बंदरगाह) का बेटा‌।

वज्जी

वज्जी भी एक शक्तिशाली राज्य था जिसकी राजधानी वैशाली आज के बिहार में है। मगध के ठीक अलग, वज्जी में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था थी। सरकार को गण या संघ कहा जाता था। एक गण में एक नहीं बल्कि कई शासक होते थे और हर किसी को राजा कहा जाता था। ऐसे राजा सभी अनुष्ठान समूह में करते थे और साथ में सभाएँ करते थे। महत्वपूर्ण फैसले लेने के लिए आपस में सलाह मशवरे लिए जाते थे। लेकिन ऐसी सभाओं में महिलाओं, दासों और कम्मकारों को शामिल नहीं होने दिया जाता था।

बुद्ध और महावीर भी ऐसे ही गणों के सदस्य थे। आपको पता होगा कि बुद्ध और महावीर उस काल के महान विचारक थे।

कई राजाओं ने वैशाली के गणों पर कब्जा करने के लिए कई प्रयास किये। लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इन गणों का प्रभुत्व आज से 1500 साल पहले तक कायम रहा। आखिर में सबसे आखिरी गण पर गुप्त वंश के शासकों ने विजय प्राप्त की।

प्रश्न 1: सही या गलत बताओ।
(क) अश्वमेध के घोड़े को अपने राज्य से गुजरने की छूट देने वाले राजाओं को यज्ञ मे आमंत्रित किया जाता था।
(ख) राजा के ऊपर सारथी पवित्र जल का छिड़काव करता था।
(ग) पुरातत्वविदों को जनपदों की बस्तियों में महल मिले हैं।
(घ) चित्रित-धूसर पात्रो में अनाज रखा जाता था।
(ङ) महाजनपदों में बहुत से नगर किलाबंद थे।

उत्तर: (क) सत्य (ख) असत्य (ग) असत्य (घ) असत्य (च) सत्य


प्रश्न 2: समाज के वे कौन से समूह थे, जो गणों की सभाओं में हिस्सा नहीं ले सकते थे?

उत्तर: स्त्रियां, दास और कम्मकार

प्रश्न 3: महाजनपदो के राजा ने किले क्यों बनवाए?

उत्तर: महाजनपदो में राजाओं ने अपनी सुरक्षा के लिए किले का निर्माण करवाया था। साथ ही इसके द्वारा वे अपनी समृद्धि और शक्ति का प्रदर्शन भी करते थे। किले बनवाने से उसके अंदर के लोगों और क्षेत्र पर नियंत्रण रखना आसान होता होगा।

प्रश्न 4: आज के शासकों के चुनाव की प्रक्रिया जनपदों के चुनाव से किस तरह भिन्न थी?

उत्तर: आज के शासको का चुनाव मतदान के द्वारा होता है। लेकिन जनपद में कुछ लोग बड़े-बड़े यज्ञों का आयोजन कर अपने आप को राजा के रूप में स्थापित करते थे। ऐसे यज्ञों में से एक यज्ञ अश्वमेध यज्ञ था जिसमें एक घोड़े को राजा के लोगों के संरक्षण मे स्वतंत्र विचरण के लिए छोड़ दिया जाता था। इस घोड़े को रोकने वाले राजा को अश्वमेध यज्ञ करने वाले राजा से या तो युद्ध करना पड़ता था या घोड़े को छोड़ कर उसका आधिपत्य स्वीकार करना पड़ता था। इस तरह उस महायज्ञ को करने वाला राजा अब जन का राजा न होकर जनपदों का राजा माना जाने लगता था। कुछ राजा सम्भवत: जन यानी लोगों द्वारा चुने जाते थे।


अतिरिक्त प्रश्न

प्रश्न 1: अश्वमेध यज्ञ में किसे शामिल नहीं किया जाता था?

उत्तर: शूद्रों को

प्रश्न 2: उत्तर वैदिक ग्रंथ किसे कहते हैं?

उत्तर: ऋग्वेद के बाद रचे गए ग्रंथ को उत्तर वैदिक ग्रंथ कहते हैं, जैसे- सामवेद, यजुर्वेद, अथर्वेद

प्रश्न 3: पुरातत्वविदों को जनपदों की बस्तियाँ कहाँ-कहाँ मिली हैं?

उत्तर: दिल्ली में पुराना किला, उत्तरप्रदेश में मेरठ के पास हस्तिनापुर, एटा के पास अतरंजीखेड़ा में।

प्रश्न 4: जनपद के लोग कैसे मकान में रहते थे?

उत्तर: झोपड़ियों में

प्रश्न 5: वे कौन कौन सी फ़सलें उगाते थे?

उत्तर: चावल, गेहूँ, धान, जौ, दालें, गन्ना, तिल और सरसों जैसी फ़सलें उगाते थे।

प्रश्न 6: उस समय किलाबंदी किसे कहते हैं?

उत्तर: महाजनपदो में राजधानियों के चारों ओर लकड़ी ईट या पत्थर की ऊँची दीवारें बनाई गई थी, जिसे किलाबंदी कहते हैं।

प्रश्न 7: इस समय का सबसे महत्वपूर्ण जनपद कौन था?

उत्तर: मगध, जिसकी राजधानी बिहार में राजगृह(आधुनिक राजगीर) में बनी थी।

प्रश्न 8: वर्ण कितने और कौन कौन थे?

उत्तर: वर्ण चार थे।

  1. ब्राहमण: जिनका काम वेदों का अध्ययन, अध्यापन और यज्ञ करना था।
  2. क्षत्रिय: इसका काम युद्ध करना और लोगों की रक्षा करना था।
  3. विश या वैश्य: इसमें कृषक, पशुपालक और व्यपारी आते थे।
  4. शूद्र: इनका काम इन तीनों वर्गों की सेवा करना था। प्राय: महिलाओं को भी शूद्र माना गया था। शूद्रों को वेदों के अध्ययन का अधिकार नहीं था।

प्रश्न 9: राजाओं को कर वसूलने की आवश्यकता क्यों पड़ी?

उत्तर: महाजनपदों के राजा विशाल किले बनवाने लगे थे। साथ ही अब वे बड़ी सेना नियमित वेतन देकर सालों भर रखने लगे थे। इन सभी व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिए उपहारों पर निर्भर न रहकर उन्हें कर वसूलना पड़ा।

प्रश्न 10: कर का सबसे बड़ा भार किस पर था?

उत्तर: कर का सबसे बड़ा हिस्सा कृषकों को चुकाना पड़ता था। उन्हें अपनी उपज का 1/6 हिस्सा कर के रूप में चुकाना पड़ता था। जिसे भाग कहा जाता था।

प्रश्न 11: इस समय कृषि के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन क्या हुआ?

उत्तर: हल के फाल में अब लकड़ी की जगह लोहे का उपयोग होन लगा जिससे फसल की उपज बढ़ गई। अब धान की खेती के लिए बीज की बजाय पौधो का उपयोग होने लगा।

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