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बुद्ध की कहानी
गौतम बुद्ध का असली नाम सिद्धार्थ था। आज से 2500 वर्ष पहले आधुनिक नेपाल के कपिलवस्तु के लुंबिनी में सिद्धार्थ का जन्म हुआ था। वह एक क्षत्रिय थे और शाक्य नामक गण के सदस्य थे। सिद्धार्थ एक राजकुमार थे। बचपन में उन्हें हर सुख सुविधा मिली हुई थी। जब सिद्धार्थ बड़े हुए तो जीवन के सही अर्थ के बारे में उनके मन में कई तरह के सवाल उठने लगे। जीवन का अर्थ जानने के लिए सिद्धार्थ ने अपना घर छोड़ दिया और इधर उधर भटकने लगे। उन्होंने कई ज्ञानी लोगों से बात की लेकिन उन्हें अपने सवालों के उत्तर नहीं मिले।
अंत में सिद्धार्थ बोध गया में एक पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर बैठ गये। कई दिनों तक ध्यान लगाने के बाद सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ। ज्ञान प्राप्ति के बाद वे ‘बुद्ध’ यानि सही मायनों में ज्ञानी बन गये। उसके बाद बुद्ध ने अपना पहला प्रवचन वाराणसी के निकट सारनाथ में दिया। उसके बाद वे लोगों में ज्ञान का प्रसार करने लगे। बुद्ध की मृत्यु कुशीनगर (कुशीनारा) में हुई।
बुद्ध की शिक्षा:
- जीवन में अनेक इच्छाएँ होती हैं। जब एक इच्छा पूरी हो जाती है तो हम कुछ और की इच्छा करने लगते हैं। इससे लालसा और इच्छा का एक अंतहीन सिलसिला शुरु हो जाता है। बुद्ध ने इसे तृष्णा या तन्हा का नाम दिया।
- इच्छाओं और लालसाओं के अंतहीन चक्र के कारण जीवन कष्ट से भरा हुआ है।
- हम अपने हर काम में संयम बरतकर इस कष्ट को दूर कर सकते हैं।
- हमें दूसरों के प्रति (यहाँ तक कि पशुओं के प्रति भी) दया रखनी चाहिए।
- हमारे अच्छे और बुरे कर्मों से हमारा अभी का जीवन और मृत्यु के बाद का जीवन प्रभावित होता है।
बुद्ध ने अपने प्रवचन में प्राकृत भाषा का इस्तेमाल किया था। उस समय आम आदमी प्राकृत भाषा का ही इस्तेमाल करते थे। आम आदमी की भाषा के इस्तेमाल के कारण ही बुद्ध की शिक्षा अधिक से अधिक लोगों तक पहुँच पाई थी। बुद्ध ने लोगों से कहा कि उनकी बाद पर ऐसे ही यकीन न करें बल्कि अपने विवेक का इस्तेमाल करने के बाद ही यकीन करें।
उपनिषद
उपनिषद में कई तार्किक और आध्यात्मिक विचारों का संकलन है। उपनिषदों की रचना बुद्ध के जमाने में ही हुई थी। उपनिषदों को गुरु और शिष्य के बीच के संवाद की शैली में लिखा गया है।
उपनिषदों की रचना में मुख्यत: ब्राह्मण और क्षत्रिय पुरुषों का योगदान है। लेकिन कुछ महिलाओं ने भी इसमें अपना योगदान दिया है। ऐसी ही एक महिला का नाम है गार्गी। वह राजदरबार में होने वाली बहसों में हिस्सा लेती थीं। गरीब लोग शायद ही ऐसे वाद विवाद में हिस्सा ले पाते थे। लेकिन सत्यकाम जाबाल एक अपवाद थे। सत्यकाम की माता एक दासी थी जिनका नाम जाबाली था। गौतम नाम के एक ब्राह्मण ने सत्यकाम को अपना शिष्य बनाया और फिर उन्हें शिक्षा दी।
मनुष्य का दिमाग हमेशा से जीवन के अनसुलझे रहस्यों को समझने की कोशिश करता रहा है। इन्हीं प्रयासों के परिणामस्वरूप उपनिषदों की रचना हो पाई। लोग जीवन और उसके बाद के रहस्यों के बारे में जानना चाहते थे। कई लोगों ने आडंबरों और बलि प्रथा पर सवाल उठाने शुरु कर दिये। कई विचारकों का मानना था कि कुछ तो चिर स्थाई है तो जीवन के बाद भी कायम रहता है। इस चिर स्थाई चीज को उन्होंने आत्मा का नाम दिया। सार्वभौम आत्मा को ब्रह्म का नाम दिया गया। इन विचारकों का मानना था कि अंतत: आत्मा और ब्रह्म एकाकार हो जाते हैं।
महावीर
महावीर भी बुद्ध के आस पास ही आये थे। वह जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर थे। वह लिच्छवी के एक क्षत्रिय राजकुमार थे और वज्जी संघ के सदस्य थे। लगभग 30 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना घर छोड़ दिया। जीवन के बारे में सत्य जानने के प्रयास में वह वन वन भटकते रहे। बारह वर्ष तक कष्टमय जीवन जीने के बाद महावीर को ज्ञान प्राप्त हुआ।
महावीर की शिक्षा
- जो सत्य को जानना चाहता है उसे अपना घर छोड़ना पड़ेगा।
- सत्य की खोज में निकले व्यक्ति को अहिंसा का नियम मानना पड़ेगा। अहिंसा का मतलब है किसी भी जीव को हानि नहीं पहुँचाना। हर जीव के लिये जीवन बहुमूल्य होता है।
महावीर ने भी अपने उपदेश प्राकृत में दिये थे, इसलिए उनकी शिक्षा अधिक से अधिक लोगों में फैल पाई। जैन धर्म के अनुयायी को सादा जीवन बिताना पड़ता है। भोजन के लिए भिक्षा मांगकर काम चलाने की जरूरत थी। उसे बिलकुल इमानदार होने की जरूरत थी। चोरी करने की सख्त मनाही थी। महावीर के अनुयायी को ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता था, यानि वह शादी नहीं कर सकता था। पुरुषों को हर चीज का त्याग करना था, यहाँ तक कि कपड़ों का भी।
यह साफ है कि जैन धर्म के कठिन नियमों का पालन करना अधिकतर लोगों के लिए मुश्किल था। इसके बावजूद, कई लोगों ने अपना घर बार छोड़ दिया और महावीर के अनुयायी बन गयी। अन्य लोगों ने भिक्खू और भिक्खुनियों को भोजन प्रदान करके ही काम चलाया।
जैन धर्म के सबसे अधिक अनुयायी व्यापारी वर्ग से आये। किसानों को अच्छी फसल के लिए कीड़े मकोड़ों को मारना पड़ता था इसलिए उनके लिए जैन धर्म के नियमों का पालन मुश्किल साबित होता था।
जैन धर्म का प्रसार उत्तरी भारत के विभिन्न भागों, गुजरात, तमिल नाडु और कर्णाटक में हुआ। कई वर्षों तक महावीर और उनके शिष्यों के उपदेश मौखिक रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचते रहे। इन उपदेशों को लिखित रूप में 1500 वर्ष पहले रचा गया। आज वे उस रूप में गुजरात के वल्लभी में सुरक्षित हैं।
संघ
महावीर और बुद्ध ने अपने अनुयायियों के ठहरने के लिए संघों की व्यवस्था की। जो लोग अपना घर बार छोड़ देते थे उनके लिए बने समूह को संघ कहते थे। महावीर और बुद्ध दोनों का मानना था कि जीवन का मर्म जानने के लिए घर छोड़ना आवश्यक था।
बौद्ध संघों के नियमों को विनय पिटक नामक पुस्तक में संकलित किया गया है। इनमे से कुछ नियम नीचे दिये गये हैं।
- महिला और पुरुष दोनों ही संघ में आ सकते थे। पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग संघ हुआ करते थे।
- कोई भी पुरुष संघ में आ सकता था। लेकिन यदि कोई बच्चा संघ में आना चाहता था तो उसे अपने माता पिता की अनुमति लेनी होती थी।
- दास को संघ में आने के लिए अपने मालिक की अनुमति लेनी होती थी।
- महिला को संघ में आने के लिए पति की अनुमति की जरूरत थी।
- किसी कर्जदार को संघ में आने के लिए कर्ज देने वाले से अनुमति लेनी होती थी।
- राजा के लिए काम करने वाले को राजा से अनुमति लेनी होती थी।
संघ का जीवन: संघ में रहने वालों को सादा जीवन जीना पड़ता था। उनका अधिकतर समय ध्यान में बीतता था। वे किसी नियत समय पर शहरों या गांवों में भिक्षा मांगने जा सकते थे। उन्हें भिक्खू और भिक्खुनी कहा जाता था। ये प्राकृत शब्द हैं जिनका मतलब ‘भिखारी’ होता है।
विहार
जैन और बौद्ध साधु धर्मोपदेश का प्रसार करने के लिए भ्रमण करते थे। लेकिन वर्षा ऋतु में यात्रा करना संभवन नहीं था। इसलिए बारिश के मौसम में उन्हें किसी स्थान पर टिकना पड़ता था। उनके कई अनुयायियों ने बगीचों में उनके लिए अस्थाई निवास बनवाए। कई साधु पहाड़ी क्षेत्रों में गुफाओं में भी रहा करते थे। समय बीतने के साथ उनके लिए स्थाई निवास बनने लगे। ऐसे भवनों को विहार कहा जाता था। विहार बनाने के लिए व्यापारियों, जमींदारों और राजाओं ने धन और जमीन दान में दिये। शुरु शुरु में विहार लकड़ी से बनाये गये। बाद में ईंटों से भी विहार बनने लगे। कुछ विहार गुफाओं में बनाये गये, खासकर पश्चिम भारत में।
आश्रम व्यवस्था
उसी जमाने में ब्राह्मणों ने आश्रम व्यवस्था विकसित की। इस व्यवस्था के अनुसार जीवन को चार चरणों में बाँटा गया है, जो इस प्रकार हैं।
- ब्रह्मचर्य: ब्रह्मचर्य आश्रम का पालन करने वाले को सादा जीवन जीना होता है। उसे वेदों का अध्ययन करना होता है।
- गृहस्थ: इस आश्रम का पालन करने वाले को शादी करके घर बसाना होता है। उसे परिवार की जिम्मेदारियाँ उठानी पड़ती हैं।
- वानप्रस्थ: इस आश्रम का पालन करने वाले को वन में जाकर ध्यान लगाना होता है।
- सन्यास: इस आश्रम का पालन करने वाले को अपना सब कुछ त्याग करना होता है।
आश्रम व्यवस्था को ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के लिए बनाया गया था। महिलाओं को वेद पढ़ने की अनुमति नहीं थी। कोई भी महिला अपने आप किसी आश्रम का चुनाव करने के लिए स्वतंत्र नहीं होती थी। महिला को अपने पति के अनुसार किसी आश्रम व्यवस्था का पालन करना होता था।
Questions and answers
प्रश्न 1: बुद्ध ने लोगों तक अपने विचारों का प्रसार करने के लिए किन-किन बातों पर जोर दिया?
उत्तर: बुद्ध ने लोगों तक अपने विचारों का प्रसार करने के लिए दो प्रमुख बातों पर जोर दिया। बुद्ध ने अपने संदेश प्राकृत भाषा में दिये। उस समय सामान्य लोग प्राकृत भाषा में ही बात चीत करते थे। इससे साधारण लोग भी उनके विचारों पर अमल करने लगे| बुद्ध ने इन बातों पर भी जोर दिया कि लोग किसी भी विचार को आँख मूंद कर न मानें बल्कि उसे अपनी समझ और विवेक से जाँच परख कर माने।
प्रश्न 2: सही व गलत वाक्य बताओ।
(क) बुद्ध ने पशुबलि को बढावा दिया।
(ख) बुद्ध द्वारा प्रथम उपदेश सारनाथ में देने के कारण इस जगह का बहुत महत्व है।
(ग) बुद्ध ने शिक्षा दी कि कर्म का हमारे जीवन पर कोई प्रभाव नही पड़ता।
(घ) बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान प्राप्त किया।
(ङ) उपनिषदों के विचारकों का मानना था आत्मा और ब्रह्म वास्तव में एक ही है|
उत्तर: (क) गलत (ख) सही (ग) गलत (घ) सही (ड़) सही
प्रश्न 3: उपनिषदों के विचारक किन प्रश्नों का उत्तर देना चाहते थे?
उत्तर: उपनिषद विचारक विभिन्न कठिन प्रश्नों का उत्तर ढ़ूँढने का प्रयास कर रहे थे। कुछ विचारक मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में जानना चाह रहे थे, तो कुछ ज़िंदगी की सच्चाई जानना चाह रहे थे । कुछ यज्ञों की उपयोगिता के बारे में जानने की कोशिश कर रहे थे।
प्रश्न 4: महावीर की प्रमुख शिक्षाऐं क्या थी?
उत्तर: महावीर की प्रमुख शिक्षाऐं बहुत ही सरल थी। उन्होंने कहा कि सत्य की खोज करने वाले प्रत्येक स्त्री और पुरूष को अपना घर छोड़ देना चाहिए। उन्होंने अहिंसा के नियमों का कड़ाई से पालन करने पर जोर दिया। इसके अंतर्गत किसी भी जीव को को न तो कष्ट देना चाहिए, न ही उसकी हत्या करनी चाहिए।
प्रश्न 5: क्या तुम सोचते हो कि दासों के लिए संघ में प्रवेश करना आसान रहा होगा, तर्क सहित उत्तर दो।
उत्तर: दासों के लिए संघ में प्रवेश के द्वार तो खुले थे, लेकिन नियम के अनुसार उन्हें प्रवेश पाने के लिए अपने मालिकों से आज्ञा लेनी पड़ती थी। ये उतना आसान नहीं था, दासो कों मालिकों की दया पर निर्भर रहना पड़ता था। मालिक सदा से ही दासो कों अपनी जायदाद समझते हैं।
Extra Questions Answers
प्रश्न 1: बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति कहाँ हुई?
उत्तर: बोधगया में
प्रश्न 2: उन्होंने पहला उपदेश कहाँ दिया?
उत्तर: सारनाथ में
प्रश्न 3: उनकी मृत्यु कहन हुइ थी?
उत्तर: कुशीनारा में
प्रश्न 4: बुद्ध के अनुसार लोगों के जीवन में दुख का प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर: इच्छा
प्रश्न 5: महावीर के अनुयायियों को क्या कहते हैं?
उत्तर: जैन
प्रश्न 6: जैन धर्म को मुख्यत: किसने अपनाया?
उत्तर: व्यापारियों ने
प्रश्न 7: संघ में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं के लिए बनाए नियम किस ग्रंथ में मिलते हैं?
उत्तर: विनयपिटक
प्रश्न 8: जैन और बौद्ध भिक्षुओ के शरणस्थल को क्या कहते थे?
उत्तर: विहार
प्रश्न 9: ब्राह्मणों ने कितने तरह की आश्रम व्यवस्था की बात की? विस्तार मे बताएँ।
उत्तर: ब्राह्मणों ने चार तरह की आश्रम व्यवस्था की बात की।
- ब्रह्मचर्य, इसके अंतर्गत ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को सादा जीवन बिताकर वेदों के अध्ययन की बात कही गई थी।
- गृहस्थ आश्रम, इसमें विवाह कर गृहस्थ के रूप में रहने की बात कही गई।
- वाणप्रस्थ आश्रम, जंगल मे जाकर साधना करनी चाहिए।
- सन्यास आश्रम, अंत में सब कुछ त्याग कर सन्यासी का जीवन जीना चाहिए।
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